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सरकार की कमाई, जनता की महंगाई: पेट्रोल-डीज़ल टैक्स विश्लेषण

भारत में पेट्रोल और डीज़ल की मूल्य संरचना (2014–2025): एक दशक की कहानी

2014 से 2025 के बीच पेट्रोल और डीज़ल पर बढ़ते टैक्स और गिरती क्रूड ऑयल कीमतों को दर्शाता हुआ ग्राफिकल थम्बनेल, जिसमें आम आदमी की जेब पर असर को प्रतीकात्मक रूप से दिखाया गया है।

2014 के बाद से भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कई बड़े बदलाव आए हैं। इन बदलावों का मुख्य कारण अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, केंद्र और राज्य सरकारों के टैक्स, और सरकारी नीतियों में बदलाव रहा है। यहाँ 2014 से अब तक के पेट्रोल-डीजल प्राइस स्ट्रक्चर का विश्लेषण किया गया है।

🔍 पेट्रोल-डीज़ल की कीमत कैसे तय होती है?

भारत में पेट्रोल और डीज़ल की खुदरा कीमतें (retail prices) कई घटकों से मिलकर बनती हैं:

  1. Base Price (आधार मूल्य) अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल (crude oil) की कीमत।
  2. Excise Duty (केंद्रीय उत्पाद शुल्क) केंद्र सरकार द्वारा लगाया गया टैक्स।
  3. VAT (मूल्य वर्धित कर) राज्य सरकारों द्वारा लगाया गया टैक्स, जो हर राज्य में अलग होता है।
  4. Dealer Commission पेट्रोल पंप मालिकों को मिलने वाला कमीशन।
  5. Transportation & Refining Cost तेल को शुद्ध करने और पहुंचाने की लागत।

2014 के बाद से प्रमुख घटनाक्रम

  1. 2014: केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों को बाजार आधारित (de-regulated) कर दिया। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से दाम तय होने लगे।
  2. 2015-2017: कच्चे तेल की कीमतें वैश्विक स्तर पर घटीं, लेकिन सरकार ने एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी, जिससे उपभोक्ताओं को पूरी राहत नहीं मिली।
  3. 2018-2019: तेल की कीमतों में फिर से तेजी आई, जिससे पेट्रोल-डीजल महंगे हुए। राज्य सरकारों ने भी VAT बढ़ाया।
  4. 2020 (कोविड-19): लॉकडाउन के दौरान कच्चे तेल के दाम ऐतिहासिक रूप से गिर गए, लेकिन पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रहीं क्योंकि सरकार ने टैक्स बढ़ा दिए।
  5. 2021-2022: वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें बढ़ीं, जिससे भारत में भी दाम ऊँचे रहे। टैक्स में कुछ राहत दी गई।
  6. 2023-2025: कच्चे तेल के दाम में उतार-चढ़ाव जारी रहा, लेकिन पेट्रोल-डीजल के रेट काफी हद तक स्थिर रहे, खासकर 2024-25 में टैक्स में राहत के कारण

2014 में टैक्स की स्थिति

  1. पेट्रोल पर केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी: ₹9.48 प्रति लीटर
  2. डीजल पर केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी: ₹3.56 प्रति लीटर
  3. राज्य सरकारों का वैट: हर राज्य में अलग-अलग, औसतन 20-25% के आसपास
  4. कुल मिलाकर, पेट्रोल-डीजल पर टैक्स का भार सीमित था और अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम भी ऊँचे थे

👉 उस समय अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतें गिर रही थीं, लेकिन भारत में टैक्स बढ़ाकर सरकार ने राजस्व बढ़ाने का रास्ता चुना।

2014-2016: टैक्स में पहली बड़ी बढ़ोतरी

  1. नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच केंद्र सरकार ने 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई।
  2. पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी में कुल 11.77 रुपये और डीजल पर 13.47 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई 2
  3. इस दौरान कच्चे तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिर रहे थे, लेकिन सरकार ने टैक्स बढ़ाकर उपभोक्ताओं को राहत नहीं दी 2

2016-2020: टैक्स वृद्धि जारी

  1. 2014-15 में पेट्रोलियम टैक्स से केंद्र सरकार को 1.3 लाख करोड़ रुपये मिले, जो 2020-21 में 4.3 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गए 14
  2. 2014-15 में केंद्र के इनडायरेक्ट टैक्स में पेट्रोलियम टैक्स की हिस्सेदारी 22.8% थी, जो 2021-22 में 34.3% हो गई 1
  3. मई 2020 तक पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 32.98 रुपये और डीजल पर 31.83 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई थी, यानी पेट्रोल पर लगभग 4 गुना और डीजल पर 8 गुना बढ़ोतरी 36

कोविड काल (2020-2021): टैक्स चरम पर

  1. कोविड के दौरान कच्चे तेल के दाम गिरने पर सरकार ने फिर टैक्स बढ़ा दिए।
  2. मार्च 2020 से पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 16 रुपये एक्साइज ड्यूटी और सेस बढ़ाया गया2
  3. नवंबर 2021 तक पेट्रोल पर 32.90 रुपये और डीजल पर 31.80 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूली गई 2
  4. मई 2020 तक पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 32.98 रुपये और डीजल पर 31.83 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई थी, यानी पेट्रोल पर लगभग 4 गुना और डीजल पर 8 गुना बढ़ोतरी 3 6

📈 2014–2020: टैक्स में तेज़ी से बढ़ोतरी

➡️ 2014 से 2020 के बीच, पेट्रोल पर टैक्स ₹23.50 और डीज़ल पर ₹28.27 बढ़ा दिया गया।

📌 मई 2020 तक पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 32.98 रुपये और डीजल पर 31.83 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई थी, यानी पेट्रोल पर लगभग 4 गुना और डीजल पर 8 गुना बढ़ोतरी।

📌 सरकार ने 10 बार टैक्स बढ़ाया (Nov 2014 – Jan 2016) ताकि अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट से मिलने वाले लाभ को राजस्व में बदला जा सके।

2021-2025: टैक्स में कुछ राहत

  1. नवंबर 2021 में पांच राज्यों के चुनाव से पहले पेट्रोल पर 5 रुपये और डीजल पर 10 रुपये एक्साइज ड्यूटी घटाई गई 2
  2. 2022-23 में केंद्र सरकार पेट्रोल पर 27.90 रुपये और डीजल पर 21.80 रुपये एक्साइज ड्यूटी वसूल रही थी 4
  3. राज्यों ने भी कभी-कभी VAT घटाया, लेकिन कई राज्यों में टैक्स अब भी ऊँचा है 8
  4. 2014 के मुकाबले पेट्रोल-डीजल पर टैक्स 217% तक बढ़ा है 5

✂️ 2021–2022: टैक्स में कटौती

  • Nov 2021: पेट्रोल पर ₹5 और डीज़ल पर ₹10 की कटौती
  • May 2022: पेट्रोल पर ₹8 और डीज़ल पर ₹6 की और कटौती

➡️ इसके बाद एक्साइज ड्यूटी घटकर:

  • पेट्रोल: ₹19.90
  • डीज़ल: ₹15.80 हो गई

राजस्व और टैक्स का असर

  1. 2014-15 में केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम टैक्स से 1.3 लाख करोड़ और राज्यों ने 1.37 लाख करोड़ रुपये कमाए थे 14
  2. 2020-21 में यह बढ़कर केंद्र के लिए 4.3 लाख करोड़ और राज्यों के लिए 2.02 लाख करोड़ रुपये हो गया 14
  3. पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से केंद्र सरकार की कमाई तीन से चार गुना और राज्यों की डेढ़ गुना बढ़ गई 14


निष्कर्ष

  1. 2014 के बाद पेट्रोल-डीजल पर टैक्स में कई गुना बढ़ोतरी हुई, खासकर केंद्र सरकार द्वारा।
  2. सबसे तेज़ बढ़ोतरी 2014-2016 और कोविड काल (2020-21) में हुई।
  3. टैक्स में वृद्धि के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम गिरने के बावजूद उपभोक्ताओं को राहत नहीं मिली।
  4. 2021 के बाद टैक्स में कुछ राहत दी गई, लेकिन 2014 के मुकाबले टैक्स अब भी कहीं ज्यादा है।

सारांश:
2014 के बाद पेट्रोल-डीजल पर टैक्स सबसे ज्यादा 2020-21 में बढ़ा, पेट्रोल पर टैक्स 4 गुना और डीजल पर 8 गुना तक पहुंच गया था 6 3 2 । टैक्स में सबसे बड़ी वृद्धि 2014-2016 और 2020-21 में हुई।


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