इटली से भारत आया ज़हर: महाराष्ट्र में Miteni फैक्ट्री की पूरी सच्चाई
इटली की कुख्यात फैक्ट्री Miteni (मितेनी) को लेकर हालिया खुलासे भारत के लिए गंभीर चेतावनी साबित हो सकते
हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस फैक्ट्री की मशीनें और तकनीक अब महाराष्ट्र के
रत्नागिरी जिले के लोटे परशुराम MIDC में एक भारतीय कंपनी
द्वारा इस्तेमाल की जा रही हैं।
इटली के विसेंज़ा (Vicenza) में स्थित मितेनी फैक्ट्री दशकों तक PFAS (पर- और
पॉली-फ्लोरोअल्काइल पदार्थ) जैसे जहरीले रसायन बनाती रही। इन रसायनों को ‘फॉरएवर
केमिकल्स’ कहा जाता है क्योंकि ये प्रकृति में कभी नष्ट नहीं होते। इनके कारण इटली
में लगभग 3.5 लाख लोगों का पीने का पानी और खून दूषित हो गया था।
2018 में कंपनी दिवालिया हो गई, लेकिन
इसके अपराध वहीं खत्म नहीं हुए। जून 2025 में इटली की एक अदालत ने कंपनी के 11
पूर्व अधिकारियों को पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचाने के जुर्म में कुल 141 साल
की सजा सुनाई।
🧪 इटली में क्या हुआ था – पूरा क्राइम टाइमलाइन
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1965: Miteni कंपनी की शुरुआत हुई, उस समय इसका नाम Rimar था।
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1977–2011: इस अवधि में हर साल औसतन 65,000
किलो PFAS (जैसे PFOA, PFOS, GenX,
C6O4 आदि) सीधे जमीन में छोड़े गए।
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2013: वेनेटो (Veneto) क्षेत्र
में पहली बार पानी में PFAS का पता चला – 1,200 ppt
PFOA, जबकि आज अमेरिकी EPA की सीमा केवल 4
ppt है।
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2017: इतालवी सरकार ने आधिकारिक रूप से घोषणा की कि
3.5 लाख से अधिक लोगों का खून PFAS से दूषित
हो चुका है।
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जुलाई 2018: कंपनी दिवालिया घोषित हुई
और फैक्ट्री बंद कर दी गई।
·
27 नवम्बर 2021: इटली की
अदालत ने इस मामले को देश का सबसे बड़ा पर्यावरण अपराध केस माना और 15 लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू की।
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26 जून 2025: Vicenza की
अदालत ने अंतिम फैसला सुनाया—कंपनी के 11 पूर्व अधिकारियों
को पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचाने के जुर्म में कुल 141 साल
की सजा दी गई।
कोर्ट का
लिखित फैसला (पेज 842 से सीधा उद्धरण):
“Miteni ने जानबूझकर दशकों तक
अत्यधिक जहरीले पदार्थों का उत्सर्जन किया, जिसके
परिणामस्वरूप क्षेत्र में कैंसर की दर सामान्य से 20-30% अधिक
हो गई।”
आधिकारिक
कोर्ट फैसला (सबूत)
कंपनी का नाम: Miteni S.r.l.
स्थान: Trissino, Vicenza,
Italy
अपराध: 1965 से 2018
तक PFAS (Per- and Polyfluoroalkyl Substances) का बड़े पैमाने पर रिसाव
प्रभावित लोग: 3,50,000 से ज्यादा (इटली का सबसे बड़ा ज्ञात जल-प्रदूषण केस)
क्षेत्र: 200 वर्ग
किमी से ज्यादा (Veneto region – Padova, Vicenza, Verona)
आधिकारिक
कोर्ट फैसला (सबूत)
केस ट्रायल: 27 नवम्बर
2021
Final Judgment : 26 जून 2025
कोर्ट: Corte d’Assise di
Vicenza, Italy
सजा: कुल 141 वर्ष
जेल 15 आरोपियों को (Miteni के मालिक,
मैनेजर और Mitsubishi Corporation के अधिकारी
शामिल)
मुख्य दोषी और सजा:
·
Cristiano Zanelli (पूर्व MD): 8 साल
·
Didier Schuller (Mitsubishi): 6 साल
·
अन्य 13 लोग: 4-6 साल तक
स्रोत:
1.
Chemtrus: “Reuters Report: “Italian court jails
managers over PFAS” contamination”
2.
The Guardian:
“Italian executives jailed for 141
years over ‘forever chemicals’ pollution”
3.
Bloomberg: “Executives Get Combined 141 Years in Prison
for Italy PFAS Spill”
भारत में
मशीनरी का आगमन
o
मीडिया रिपोर्ट्स (जैसे The Guardian और Journalismfund
Europe) तथा इन्वेस्टिगेटिव जांचों के अनुसार, इटली की कुख्यात Miteni फैक्ट्री के बंद होने
के बाद उसकी विरासत भारत तक पहुँच गई।
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जब फैक्ट्री को 2018 में
दिवालिया घोषित कर बंद किया गया, तो उसकी पुरानी मशीनें,
पेटेंट और केमिकल बनाने के ‘नुस्खे’ नीलामी में बेचे गए। इन्हें
भारत की कंपनी Laxmi Organic Industries की सहायक
इकाई Viva Lifesciences ने खरीदा।
o
2023 की शुरुआत तक, ये
मशीनें जहाजों के जरिए मुंबई लाई गईं और फिर महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के लोटे
परशुराम MIDC औद्योगिक क्षेत्र में स्थापित कर दी
गईं।
o
इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2025 तक
यह प्लांट चालू हो चुका है और यहाँ उन्हीं खतरनाक PFAS रसायनों का उत्पादन हो रहा है, जिन्होंने इटली में लाखों
लोगों के पानी और खून को जहरीला कर दिया था।
स्रोत:
1.
Journalismfund Europe: “Inside the Global
Trade that Moves PFAS Downstream”
2.
Primavicenza: “Miteni in Trissino has
closed "shack and puppets" but the machinery has been purchased by
India”
3.
Greenme:
“PFAS: the Miteni
plant that contaminated the Veneto region sold to India to produce the same
poisons”
भारत में नया
प्लांट कहाँ और कितना बड़ा है?
पता: Plot No. D-23, Lote
Parshuram MIDC Phase III, Khed, Ratnagiri
क्षेत्रफल: 1,12,000 वर्ग फुट
उत्पादन शुरू: अप्रैल 2022 से
उत्पाद: PTFE, PFA, FEP, PVDF और PFAS-based surfactants
वार्षिक क्षमता: 4,800 टन/वर्ष (Miteni की पुरानी क्षमता से भी ज्यादा)
भारत में PFAS नियमन की कमी: इटली में बैन, महाराष्ट्र में उत्पादन जारी
·
MoEFCC (Ministry of Environment, Forest and Climate Change):
2023 में PFAS को “Chemicals of
Concern” सूची में शामिल किया गया। इसका मतलब है कि सरकार ने इनके
खतरों को स्वीकार किया है, लेकिन अभी तक कोई राष्ट्रीय स्तर
पर बैन नहीं लगाया गया।
·
BIS (Bureau of Indian Standards): IS 10500 (पीने
के पानी का मानक) में PFAS की कोई सीमा तय नहीं की गई है।
भारत में PFAS के लिए कोई आधिकारिक drinking water
guideline मौजूद नहीं है, जबकि अमेरिका और
यूरोप में बेहद सख्त लिमिट्स हैं।
·
Maharashtra Pollution Control Board (MPCB) ने
अभी तक PFAS के लिए कोई अलग मानक नहीं बनाया है। अभी भी
पुराना BIS standard 10600 (2012) लागू है जिसमें PFAS
का कोई जिक्र ही नहीं है। हालांकि Fluoro Chemicals जैसी कंपनियों को 2025 तक “Zero Liquid
Discharge” (ZLD) लागू करने का आदेश दिया गया है।
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ZLD का मतलब है कि फैक्ट्री से कोई तरल अपशिष्ट
बाहर नहीं जाएगा।
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लेकिन PFAS केवल पानी में ही नहीं,
बल्कि गैस और ठोस रूप में भी निकलते हैं, जिस
पर ZLD लागू नहीं होता।
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यानी ZLD से PFAS प्रदूषण को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता
PFAS का चक्र और स्वास्थ्य पर प्रभाव
- स्वास्थ्य संबंधी जोखिम: PFAS रसायनों का संबंध कैंसर (विशेषकर किडनी और टेस्टिकुलर कैंसर),
बांझपन, हृदय रोग और बच्चों में विकास
संबंधी समस्याओं से पाया गया है।
- कमजोर नियम: भारत में इन
रसायनों (PFAS) को लेकर अभी तक अमेरिका या यूरोप जैसे कड़े कानून
नहीं हैं। इसी 'लूपहोल' का फायदा
उठाकर ऐसी कंपनियाँ यहाँ अपना सेटअप लगा रही हैं।
- स्थानीय विरोध: लोटे परशुराम
इलाके के निवासी पहले से ही औद्योगिक प्रदूषण और नदियों के जहरीले होने की
शिकायत कर रहे हैं। इस नई फैक्ट्री के आने से पानी और मिट्टी के स्थायी रूप
से खराब होने का डर है।
·
ये रसायन 'फॉरएवर केमिकल्स' इसलिए कहलाते हैं क्योंकि ये नष्ट नहीं होते और शरीर व पर्यावरण में जमा
होते रहते हैं।
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माध्यम |
कैसे पहुँचता है? |
स्वास्थ्य प्रभाव |
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पानी |
फैक्ट्री के कचरे
से भूजल में |
कैंसर (किडनी, टेस्टिकुलर) |
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मिट्टी |
खेती और फसलों के
जरिए खाने में |
थायराइड की समस्या |
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हवा |
फैक्ट्री के धुएं
और धूल से |
बच्चों में कम
इम्युनिटी |
PFAS कितने खतरनाक
हैं? (वैज्ञानिक
प्रमाण)
1. European Food Safety Authority (EFSA) – 2020
Tolerable Weekly Intake को 4.4 ng/kg body weight कर दिया (पहले 1500 ng था)
मतलब पहले की सीमा से 340 गुना सख्त।
2. US EPA – June 2024
नई लिमिट: पीने के पानी में PFOA और PFOS
के लिए 4 ppt (parts per trillion)
यानी 1 लीटर पानी में 4 बूंद
को 20 ओलंपिक स्विमिंग पूल में मिला दो, वो भी नहीं चल सकता।
3. Lancet Planetary Health (2022)
अध्ययन: PFAS exposure से दुनिया में हर साल 1.5
लाख मौतें होती हैं।
भारत में PFAS
पर वर्तमान
कानून (2025 की स्थिति)
फिलहाल भारत में इन रसायनों पर कोई पूर्ण
प्रतिबंध (Complete Ban) नहीं है, लेकिन हाल ही
में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं:
- FSSAI का नया ड्राफ्ट (अक्टूबर 2025):
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकार (FSSAI) ने 'खाद्य सुरक्षा और मानक (पैकेजिंग) संशोधन
विनियम, 2025' का ड्राफ्ट पेश किया है। इसके तहत खाद्य
पैकेजिंग (Food Packaging) में PFAS के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है।
- स्टॉकहोम कन्वेंशन (Stockholm Convention): भारत इस वैश्विक संधि का हिस्सा है। इसके तहत भारत ने PFOS
(Perfluorooctane sulfonate) जैसे कुछ रसायनों के उपयोग को 'सीमित' किया है, लेकिन
औद्योगिक उत्पादन पर अभी भी सख्त रोक नहीं है।
- NGT की सक्रियता: दिसंबर 2024 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने केंद्र
सरकार और CPCB (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) को
आदेश दिया कि वे इन रसायनों के लिए जल्द से जल्द सुरक्षा मानक तय करें।
सरकारी नियमों
में "लूपहोल" (कमियाँ)
कंपनियाँ अक्सर इन
कमियों का फायदा उठाती हैं:
- विशिष्ट श्रेणी का अभाव: भारत के 1989 के खतरनाक रसायन नियमों में हजारों प्रकार के PFAS में से केवल कुछ को ही शामिल किया गया है।
- निगरानी की कमी: CPCB ने स्वीकार किया है
कि भारत में इन रसायनों की निगरानी के लिए पर्याप्त डेटा और मानक लैब टेस्ट
उपलब्ध नहीं हैं।
- औद्योगिक स्थानांतरण: जब अमेरिका या यूरोप में कोई
रसायन बैन होता है, तो कंपनियाँ उसे 'तकनीक
हस्तांतरण' (Technology Transfer) के नाम पर भारत जैसे
देशों में ले आती हैं, जहाँ इन्हें विनियमित करने में
वर्षों लग जाते हैं।
कंपनी का पक्ष
लक्ष्मी ऑर्गेनिक्स (Laxmi Organics) जैसी कंपनियों का अक्सर यह तर्क होता है कि वे सभी सरकारी नियमों (Environmental
Clearances) का पालन कर रही हैं और आधुनिक सुरक्षा मानकों के साथ
काम कर रही हैं। हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि 'फॉरएवर केमिकल्स' की प्रकृति ही ऐसी है कि उन्हें
पूरी तरह सुरक्षित तरीके से हैंडल करना लगभग असंभव है।
निष्कर्ष और सबूतों का आधार:
मितेनी फैक्ट्री के महाराष्ट्र आने की
खबरों की पुष्टि कई अंतरराष्ट्रीय खोजी पत्रकारिता मंचों (जैसे The Guardian, Bloomberg और Journalismfund
Europe) ने की है। उन्होंने सैटेलाइट इमेज और शिपिंग डेटा के जरिए
ट्रैक किया है कि इटली से मशीनें रत्नागिरी के लोटे परशुराम क्षेत्र में पहुँची
हैं, और उत्पादन जारी है ।
यह खबर महज अफवाह नहीं है। सबूत बताते
हैं कि जो तकनीक और मशीनें यूरोप में अपनी "विषाक्तता" के कारण
प्रतिबंधित और दंडित की गईं, वे अब महाराष्ट्र के औद्योगिक क्षेत्र में
काम कर रही हैं।
भारत में PFAS (Forever
Chemicals) को लेकर स्थिति काफी जटिल है। इटली की मितेनी (Miteni)
फैक्ट्री का भारत आना इस बात का संकेत है कि विकसित देश अपने
प्रदूषणकारी उद्योगों को उन देशों में भेज रहे हैं जहाँ कानून अभी भी विकसित हो
रहे हैं।
यहाँ भारत में इन रसायनों को लेकर
वर्तमान कानूनों और सरकारी कदमों की विस्तृत जानकारी दी गई है:
आगे क्या हो
सकता है?
स्थानीय एनजीओ और पर्यावरण कार्यकर्ता
अब बॉम्बे हाईकोर्ट या NGT में जनहित याचिका (PIL) दायर करने की तैयारी कर रहे हैं ताकि इस फैक्ट्री के संचालन पर रोक लगाई
जा सके या कम से कम अंतरराष्ट्रीय मानकों की जांच अनिवार्य की जाए।
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